उक्ति (जला है जीवन यह) / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

जला है जीवन यह
आतप में दीर्घकाल;
सूखी भूमि, सूखे तरु,
सूखे सिक्त आलबाल;
बन्द हुआ गुंज, धूलि–
धूसर हो गये कुंज,
किन्तु पड़ी व्योम उर
बन्धु, नील-मेघ-माल।

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