आली, म्हांने लागे वृन्दावन नीको / मीराबाई

राग वृन्दावनी
आली, म्हांने लागे वृन्दावन नीको।
घर घर तुलसी ठाकुर पूजा दरसण गोविन्दजी को॥
निरमल नीर बहत जमुना में, भोजन दूध दही को।
रतन सिंघासन आप बिराजैं, मुगट धर्‌यो तुलसी को॥
कुंजन कुंजन फिरति राधिका, सबद सुनन मुरली को।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बजन बिना नर फीको॥

शब्दार्थ :- म्हांने =मुझे। मुगट = मुकुट। फीको = नीरस, व्यर्थ।

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