आओ सहेल्हां रली करां है पर घर गवण निवारि / मीराबाई

राग हमीर
आओ सहेल्हां रली करां है पर घर गवण निवारि॥
झूठा माणिक मोतिया री झूठी जगमग जोति।
झूठा आभूषण री, सांची पियाजी री प्रीति॥
झूठा पाट पटंबरा रे, झूठा दिखडणी चीर।
सांची पियाजी री गूदड़ी, जामें निरमल रहे सरीर॥
छपन भोग बुहाय देहे इण भोगन में दाग।
लूण अलूणो ही भलो है अपणे पियाजीरो साग॥
देखि बिराणे निवांणकूं है क्यूं उपजावे खीज।
कालर अपणो ही भलो है, जामें निपजै चीज॥
छैल बिराणो लाखको है अपणे काज न होय।
ताके संग सीधारतां है भला न कहसी कोय॥
बर हीणो अपणो भलो है कोढी कुष्टी कोय।
जाके संग सीधारतां है भला कहै सब लोय॥
अबिनासीसूं बालबा हे जिनसूं सांची प्रीत।
मीरा कूं प्रभुजी मिल्या है ए ही भगतिकी रीत॥
शब्दार्थ :- रली करां =आनन्द मनायें। गवण =जाना-आना। दिखणी =दक्षिणी, दक्षिण में बननेवाला एक कीमती वस्त्र। चीर =साड़ी। बुहाय देहे = बहा दो दाग =दोष।अलूणो =बिना नमक का। बिराणे =पराये। निवांण = उपजाऊ जमीन। खीज =द्वेष। कांकर =कंकरीली जमीन। लाखको =लाखों का, अनमोल। हीणो लोह =लोग। बालवा = बालम, प्रियतम।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *