अलाव / अज्ञेय

माघ : कोहरे में अंगार की सुलगन
अलाव के ताव के घेरे के पार
सियार की आँखों में जलन
सन्नाटे में जब-तब चिनगी की चटकन
सब मुझे याद है : मैं थकता हूँ
पर चुकती नहीं मेरे भीतर की भटकन !

नयी दिल्ली, दिसम्बर, 1980

Published
Categorized as Agyeya

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *