अगर मौज है बीच धारे चला चल वगरना किनारे किनारे चला चल इसी चाल से मेरे प्यारे चला चल गुज़रती है जैसे गुज़ारे चला चल तुझे साथ देना है बहरूपियों का नए से नया रूप धारे चला चल ख़ुदा को न तकलीफ़ दे डूबने में किसी नाख़ुदा के सहारे चला चल पहुँच जाएँगे क़ब्र में… Continue reading अगर मौज है बीच धारे चला चल / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी
अब तो कुछ और भी अँधेरा है / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी
अब तो कुछ और भी अँधेरा है ये मिरी रात का सवेरा है रह-ज़नों से तो भाग निकला था अब मुझे रह-बरों ने घेरा है आगे आगे चलो तबर वालो अभी जंगल बहुत घनेरा है क़ाफ़िला किस की पैरवी में चले कौन सब से बड़ा लुटेरा है सर पे राही की सरबराही ने क्या सफाई… Continue reading अब तो कुछ और भी अँधेरा है / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी
आ ही गया वो मुझ को लहद में उतारने / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी
आ ही गया वो मुझ को लहद में उतारने ग़फ़लत ज़रा न की मिरे ग़फ़लत-शेआर ने ओ बे-नसीब दिन के तसव्वुर ये ख़ुश न हो चोला बदल लिया है शब-ए-इंतिज़ार ने अब तक असीर-ए-दाम-ए-फ़रेब-ए-हयात हूँ मुझ को भुला दिया मिरे परवरदिगार ने नौहा-गारों को भी है गला बैठने की फ़िक्र जाता हूँ आप अपनी अजल… Continue reading आ ही गया वो मुझ को लहद में उतारने / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी
आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है
आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है ताक़ते-बेदादे-इन्तज़ार नहीं है देते हैं जन्नत हयात-ए-दहर के बदले नश्शा बअन्दाज़-ए-ख़ुमार नहीं है गिरिया निकाले है तेरी बज़्म से मुझ को हाये! कि रोने पे इख़्तियार नहीं है हम से अबस है गुमान-ए-रन्जिश-ए-ख़ातिर ख़ाक में उश्शाक़ की ग़ुब्बार नहीं है दिल से उठा लुत्फे-जल्वाहा-ए-म’आनी ग़ैर-ए-गुल आईना-ए-बहार नहीं… Continue reading आ कि मेरी जान को क़रार नहीं है
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है न शोले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा कोई बताओ कि वो शोखे-तुंदख़ू क्या है ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसे वरना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है चिपक रहा है बदन पर लहू से… Continue reading हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम न आए तो क्या सहर न हुई
तुम न आए तो क्या [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”प्रात:”]सहर[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] न हुई हाँ मगर चैन से [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”गुज़रना”]बसर[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] न हुई मेरा [ithoughts_tooltip_glossary-tooltip content=”रोना-धोना, शिकवा”]नाला[/ithoughts_tooltip_glossary-tooltip] सुना ज़माने ने एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई
हुज़ूर-ए-यार में हर्फ़ इल्तिजा के / अमजद इस्लाम
हुज़ूर-ए-यार में हर्फ़ इल्तिजा के रक्खे थे चराग़ सामने जैसे हवा के रक्खे थे बस एक अश्क-ए-नदामत ने साफ़ कर डाले वो सब हिसाब जो हम ने उठा के रक्खे थे सुमूम-ए-वक़्त ने लहजे को ज़ख़्म ज़ख़्म किया वगरना हम ने क़रीने सबा के रक्खे थे बिखर रहे थे सो हम ने उठा लिए ख़ुद… Continue reading हुज़ूर-ए-यार में हर्फ़ इल्तिजा के / अमजद इस्लाम
एक आज़ार हुई जाती है शोहरत / अमजद इस्लाम
एक आज़ार हुई जाती है शोहरत हम को ख़ुद से मिलने की भी मिलती नहीं फ़ुर्सत हम को रौशनी का ये मुसाफ़िर है रह-ए-जाँ का नहीं अपने साए से भी होने लगी वहशत हम को आँख अब किस से तहय्युर का तमाशा माँगे अपने होने पे भी होती नहीं हैरत हम को अब के उम्मीद… Continue reading एक आज़ार हुई जाती है शोहरत / अमजद इस्लाम
दाम-ए-ख़ुश-बू में गिरफ़्तार सबा / अमजद इस्लाम
दाम-ए-ख़ुश-बू में गिरफ़्तार सबा है कब से लफ़्ज़ इज़हार की उलझन में पड़ा है कब से ऐ कड़ी चुप के दर ओ बाम सजाने वाले मुंतज़िर कोई सर-ए-कोह-ए-निदा है कब से चाँद भी मेरी तरह हुस्न-शनासा निकला उस की दीवार पे हैरान खड़ा है कब से बात करता हूँ तो लफ़्ज़ों से महक आती है… Continue reading दाम-ए-ख़ुश-बू में गिरफ़्तार सबा / अमजद इस्लाम
बस्तियों में इक सदा-ए-बे-सदा / अमजद इस्लाम
बस्तियों में इक सदा-ए-बे-सदा रह जाएगी बाम ओ दर पे नक़्श तहरीर-ए-हवा रह जाएगी आँसुओं का रिज़्क होंगी बे-नतीजा चाहतें ख़ुश्क होंटों पर लरज़ती इक दुआ रह जाएगी रू-ब-रू मंज़र न हों तो आईने किस काम के हम नहीं होंगे तो दुनिया गर्द-ए-पा रह जाएगी ख़्वाब के नश्शे में झुकती जाएगी चश्म-ए-कमर रात की आँखों… Continue reading बस्तियों में इक सदा-ए-बे-सदा / अमजद इस्लाम