कनुप्रिया (इतिहास: उसी आम के नीचे)

उस तन्मयता में तुम्हारे वक्ष में मुँह छिपाकर लजाते हुए मैंने जो-जो कहा था पता नहीं उसमें कुछ अर्थ था भी या नहीं: आम्र-मंजरियों से भरी माँग के दर्प में मैंने समस्त जगत् को अपनी बेसुधी के एक क्षण में लीन करने का जो दावा किया था – पता नहीं वह सच था भी या… Continue reading कनुप्रिया (इतिहास: उसी आम के नीचे)

कनुप्रिया (इतिहास: अमंगल छाया)

घाट से आते हुए कदम्ब के नीचे खड़े कनु को ध्यानमग्न देवता समझ, प्रणाम करने जिस राह से तू लौटती थी बावरी आज उस राह से न लौट उजड़े हुए कुंज रौंदी हुई लताएँ आकाश पर छायी हुई धूल क्या तुझे यह नहीं बता रहीं कि आज उस राह से कृष्ण की अठारह अक्षौहिणी सेनाएँ… Continue reading कनुप्रिया (इतिहास: अमंगल छाया)

कनुप्रिया (इतिहास: एक प्रश्न)

अच्छा, मेरे महान् कनु, मान लो कि क्षण भर को मैं यह स्वीकार लूँ कि मेरे ये सारे तन्मयता के गहरे क्षण सिर्फ भावावेश थे, सुकोमल कल्पनाएँ थीं रँगे हुए, अर्थहीन, आकर्षक शब्द थे – मान लो कि क्षण भर को मैं यह स्वीकार कर लूँ कि पाप-पुण्य, धर्माधर्म, न्याय-दण्ड क्षमा-शील वाला यह तुम्हारा युद्ध… Continue reading कनुप्रिया (इतिहास: एक प्रश्न)

कनुप्रिया (इतिहास: शब्द – अर्थहीन)

पर इस सार्थकता को तुम मुझे कैसे समझाओगे कनु? शब्द, शब्द, शब्द……. मेरे लिए सब अर्थहीन हैं यदि वे मेरे पास बैठकर मेरे रूखे कुन्तलों में उँगलियाँ उलझाए हुए तुम्हारे काँपते अधरों से नहीं निकलते शब्द, शब्द, शब्द……. कर्म, स्वधर्म, निर्णय, दायित्व…….. मैंने भी गली-गली सुने हैं ये शब्द अर्जुन ने चाहे इनमें कुछ भी… Continue reading कनुप्रिया (इतिहास: शब्द – अर्थहीन)

कनुप्रिया (इतिहास: समुद्र-स्वप्न)

जिसकी शेषशय्या पर तुम्हारे साथ युगों-युगों तक क्रीड़ा की है आज उस समुद्र को मैंने स्वप्न में देखा कनु! लहरों के नीले अवगुण्ठन में जहाँ सिन्दूरी गुलाब जैसा सूरज खिलता था वहाँ सैकड़ों निष्फल सीपियाँ छटपटा रही हैं – और तुम मौन हो मैंने देखा कि अगणित विक्षुब्ध विक्रान्त लहरें फेन का शिरस्त्राण पहने सिवार… Continue reading कनुप्रिया (इतिहास: समुद्र-स्वप्न)

कनुप्रिया (समापन: समापन)

क्या तुमने उस वेला मुझे बुलाया था कनु? लो, मैं सब छोड़-छाड़ कर आ गयी! इसी लिए तब मैं तुममें बूँद की तरह विलीन नहीं हुई थी, इसी लिए मैंने अस्वीकार कर दिया था तुम्हारे गोलोक का कालावधिहीन रास, क्योंकि मुझे फिर आना था! तुमने मुझे पुकारा था न मैं आ गई हूँ कनु। और… Continue reading कनुप्रिया (समापन: समापन)

फिर हुआ वक़्त कि हो बाल कुशा मौजे-शराब

फिर हुआ वक़्त कि हो बालकुशा[1]मौजे-शराब[2] दे बते मय[3]को दिल-ओ-दस्ते शना[4] मौजे-शराब पूछ मत वजहे-सियहमस्ती[5]-ए-अरबाबे-चमन[6] साया-ए-ताक[7] में होती है हवा मौजे-शराब है ये बरसात वो मौसम कि अजब क्या है अगर मौजे-हस्ती[8] को करे फ़ैज़े-हवा[9] मौजे शराब जिस क़दर रूहे-नबाती[10] है जिगर तश्ना-ए-नाज़[11] दे है तस्कीं[12]ब-दमे- आबे-बक़ा [13] मौजे-शराब बस कि दौड़े है रगे-ताक[14] में… Continue reading फिर हुआ वक़्त कि हो बाल कुशा मौजे-शराब

दिल-ए-बे-मुद्दआ है और मैं हूँ / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

दिल-ए-बे-मुद्दआ है और मैं हूँ मगर लब पर दुआ है और मैं हूँ न साक़ी है न अब वो शय है बाकी मिरा दौर आ गया है और मैं हूँ उधर दुनिया है और दुनिया के बंदे इधर मेरा ख़ुदा है और मैं हूँ कोई पुरसाँ नहीं पीर-ए-मुगाँ का फ़क़त मेरी वफ़ा है और मैं… Continue reading दिल-ए-बे-मुद्दआ है और मैं हूँ / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

दिल अभी तक जवान है प्यारे / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी

दिल अभी तक जवान है प्यारे किसी मुसीबत में जान है प्यारे तू मिरे हाल का ख़याल न कर इस में भी एक शान है प्यारे तल्ख़ कर दी है ज़िंदगी जिस ने कितनी मीठी है ज़बान है प्यारे वक़्त कम है न छेड़ हिज्र की बात ये बड़ी दास्तान है प्यारे जाने क्या कह… Continue reading दिल अभी तक जवान है प्यारे / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी