हो रही है दर-ब-दर ऐसी जबीं-साई कि बस / ‘वामिक़’ जौनपुरी

हो रही है दर-ब-दर ऐसी जबीं-साई कि बस क्या अभी बाक़ी है कोई और रूसवाई कि बस आश्ना राहें भी होती जा रही हैं अजनबी इस तरह जाती रही आँखों से बीनाई कि बस तो सहर करते रहे हम इंतिज़ार-ए-मेहर-ए-नौ देखते ही देखते ऐसी घटा छाई कि बस ढूँडते ही रह गए हम लाल ओ… Continue reading हो रही है दर-ब-दर ऐसी जबीं-साई कि बस / ‘वामिक़’ जौनपुरी

अभी तो हौसला-ए-कारोबार बाक़ी है / ‘वामिक़’ जौनपुरी

अभी तो हौसला-ए-कारोबार बाक़ी है ये कम कि आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहार बाक़ी है अभी तो शहर के खण्डरों में झाँकना है मुझे ये देखना भी तो है कोई यार बाक़ी है अभी तो काँटों भरे दश्त की करो बातें अभी तो जैब ओ गिरेबाँ में तार बाक़ी है अभी तो काटना है तिशों से चट्टानों को अभी… Continue reading अभी तो हौसला-ए-कारोबार बाक़ी है / ‘वामिक़’ जौनपुरी