ग़ुंचा-ए-दिल खिले जो चाहो तुम / वाजिद अली शाह

ग़ुँचा-ए-दिल खिले जो चाहो तुम गुलशन-ए-दहर में सबा हो तुम बे-मुरव्वत हो बे-वफ़ा हो तुम अपने मतलब के आश्ना हो तुम कौन हो क्या हो क्या तुम्हें लिक्खें आदमी हो परी हो क्या हो तुम पिस्ता-ए-लब से हम को क़ुव्वत दो दिल-ए-बीमार की दवा हो तुम हम को हासिल किसी की उल्फ़त से मतलब-ए-दिल हो… Continue reading ग़ुंचा-ए-दिल खिले जो चाहो तुम / वाजिद अली शाह

गर्मियाँ शोखियाँ किस शान से हम / वाजिद अली शाह

गर्मियाँ शोख़ियाँ किस शान से हम देखते हैं क्या ही नादानियाँ नादान से हम देखते हैं ग़ैर से बोसा-ज़नी और हमें दुश्नामें मुँह लिए अपना पशेमान से हम देखते हैं फ़स्ल-ए-गुल अब की जुनूँ-ख़ेज़ नहीं सद-अफ़सोस दूर हाथ अपना गिरेबान से हम देखते हैं आज किस शोख़ की गुलशन में हिना-बंदी है सर्व रक़्साँ हैं… Continue reading गर्मियाँ शोखियाँ किस शान से हम / वाजिद अली शाह