पहले की तरह नहीं होगा पहला आज की नंगी आँखों में उदित होती उम्मीद कल की देह में अस्त हो जाएगी सूर्य की आत्मा में उदित होगा कल पृथ्वी के कक्ष में चलेगी कक्षा कक्षा के बाहर आते ही आकाश का नहीं रहेगा नामोनिशान ।
Category: Vanshi Maheshwari
रंग / वंशी माहेश्वरी
चढ़ते-उतरते हैं रंग रंग उतरते-चढ़ते हैं कितने ही रंग कर जाते हैं रंगीन जीवन मटमैला अदृश्य सीढ़ी हैं रंग आने-जाने वाले दृश्य के बाहर दृश्य का सिंहावलोकन विचार आकाश की टपकती छत से कितने रंग बिखरे हैं कितने ही बिखरने को हैं जिन हाथों में ब्रश हैं आधे-अधूरे चित्र चित्रित जिनमें वे कैनवॉस छिन गए… Continue reading रंग / वंशी माहेश्वरी