मैं महाकाव्य लिख रही हूँ सैंडिल पर पालिश करते हुए नहाते हुए बस पकड़ते हुए बॉस की डाँट खाते हुए रोज़ शाम दिन—भर की थकान मिटाने का बेवजह उपक्रम करते चाय पीते तुम्हें याद करते हुए महाकाव्य लिख रही हूँ !
Category: Vandana Kengrani
प्यार पर बहुत हो चुकी कविताएँ / वंदना केंगरानी
प्यार पर बहुत हो चुकी कविताएँ पिता की फटी बिवाइयों पर अभी तक नहीं लिखी कविताएँ जो रिश्ता ढूँढ़ते-ढूँढ़ते टूटने पर कसकते हैं नहीं पढ़ी गई कविताएँ बेटी के चेहरों की रेखाओं पर जो- उभर आती है अपने आप असमय ही मुझे लगता है अब इन रेखाओं की गहराइयों पर कविताएँ लिखूँ प्यार पर बहुत… Continue reading प्यार पर बहुत हो चुकी कविताएँ / वंदना केंगरानी