सवाल / त्रिपुरारि कुमार शर्मा

फ़लक पर दूर तक छाई हुई है नूर की चादर ज़मीं पर सुब्ह उतरी है कि जैसे मिट गए सब ग़म सुना है जश्न आज़ादी का हम सबको मनाना है मगर एक बात तुमसे पूछता हूँ ऐ मिरे हमदम जहाँ पे जिस्म हो आज़ाद लेकिन रूह क़ैदी हो तो क्या ऐसी रिहाई को रिहाई कह… Continue reading सवाल / त्रिपुरारि कुमार शर्मा

आज़ादी / त्रिपुरारि कुमार शर्मा

जुबां तुम काट लो या फिर लगा दो होंठ पर ताले मिरी आवाज़ पर कोई भी पहरा हो नहीं सकता मुझे तुम बन्द कर दो तीरग़ी में या सलाख़ों में परिन्दा सोच का लेकिन ये ठहरा हो नहीं सकता अगर तुम फूँक कर सूरज बुझा दोगे तो सुन लो फिर जला कर ये ज़ेह्न अपना… Continue reading आज़ादी / त्रिपुरारि कुमार शर्मा