पयामे-सुलह / त्रिलोकचन्‍द महरूम

लाई पैग़ाम मौजे-बादे-बहार कि हुई ख़त्‍म शोरिशे – कश्‍मीर दिल हुए शाद अम्‍न केशों के है यह गांधी के ख़्वाब की ताबीर सुलहजोई में अम्‍नकोशी में काश होती न इस क़दर ताख़ीर ताकि होता न इस इस क़दर नुक़्साँ और होती न दहर में तश्‍हीर बच गये होते नौजवां कितने जिनको मरवा दिया बसर्फे-कसीर ज़िक्र… Continue reading पयामे-सुलह / त्रिलोकचन्‍द महरूम

जय हिन्‍द / त्रिलोकचन्‍द महरूम

पैदा उफ़क़े –हिन्‍द से हैं सुबह के आसार है मंज़िले-आखिर में ग़ुलामी की शबे-तार आमद सहरे-नौ की मुबारक हो वतन को पामाले – महन को मश्रिक़ में ज़ियारेज हुआ सुबह का तारा फ़र्ख़न्‍दा-ओ-ताबिन्‍दा-ओ-जांबख़्श-ओ-दिलआरा रौशन हुए जाते हैं दरो-बाम वतन के ज़िन्‍दाने – कुहन के ‘जयहिन्‍द’ के नारों से फ़ज़ा गूँज रही है ‘जयहिन्‍द’ की आलम… Continue reading जय हिन्‍द / त्रिलोकचन्‍द महरूम