चाँद में ढलने सितारों में निकलने के लिए / शकील आज़मी

चाँद में ढलने सितारों में निकलने के लिए मैं तो सूरज हूँ बुझूँगा भी तो जलने के लिए मंज़िलों तुम ही कुछ आगे की तरफ़ बढ़ जाओ रास्ता कम है मिरे पाँव को चलने के लिए ज़िंदगी अपने सवारों को गिराती जब है एक मौक़ा भी नहीं देती सँभलने के लिए मैं वो मौसम जो… Continue reading चाँद में ढलने सितारों में निकलने के लिए / शकील आज़मी

बात से बात की गहराई चली जाती है / शकील आज़मी

बात से बात की गहराई चली जाती है झूठ आ जाए तो सच्चाई चली जाती है रात भर जागते रहने का अमल ठीक नहीं चाँद के इश्क़ में बीनाई चली जाती है मैं ने इस शहर को देखा भी नहीं जी भर के और तबीअत है कि घबराई चली जाती है कुछ दिनों के लिए… Continue reading बात से बात की गहराई चली जाती है / शकील आज़मी