एक मासूम मुहब्बत पे मचा है घमसान / सतीश बेदाग़

एक मासूम मुहब्बत पे मचा है घमासान दूर तक देख समन्दर में उठा है तूफ़ान एक लड़की थी सिखाती थी जो खिलकर हँसना आज याद आई है, तो हो आई है सीली मुस्कान एक वो मेला, वो झूला, वो मिरे संग तस्वीर क्या पता ख़ुश भी कहीं है, कि नहीं वो नादान फिर से बचपन… Continue reading एक मासूम मुहब्बत पे मचा है घमसान / सतीश बेदाग़

अन्दर ऊँची ऊँची लहरें उठती हैं / सतीश बेदाग़

अन्दर ऊँची-ऊँची लहरें उठती हैं काग़ज़ के साहिल पे कहाँ उतरती हैं माज़ी की शाखों से लम्हे बरसते हैं ज़हन के अन्दर तेज़ हवाएँ चलती हैं आँखों को बादल बारिश से क्या लेना ये गलियां अपने पानी से भरती हैं बाढ़ में बह जाती हैं दिल की दीवारें तब आँखों से इक दो बूंदें झरती… Continue reading अन्दर ऊँची ऊँची लहरें उठती हैं / सतीश बेदाग़