नींद में पुल / संजय कुमार सिंह

बार-बार समय को पकड़ना कविता में अपने आपको पकड़ना है। मैं लौटकर आ गया हूँ उन्हीं सवालों के नीचे कितना कठिन है मेरा समय? कितना कठिन है जीवन? …रोज़ मैं उन रास्तों को पार करता हूँ थके होने के बाजवूद स्वप्न में चलता हूँ मीलों दूर पहुँचता हूँ उन स्मृतियों के पास। वहाँ मेरा, छूटा… Continue reading नींद में पुल / संजय कुमार सिंह

हमारे पास एक दिन जब / संजय कुमार सिंह

हमारे पास एक दिन जब केवल दुःखों की दुनिया बच जाएगी हम सोचेंगे अपने तमाम अच्छे-बुरे विशेषणों के साथ उनके बारे में / हमें कहना ही पड़ेगा यह दुःख उजला था / वह काला / यह चमकीला वह पीला भूरा / वह गहरा / वह उथला वह कोलतार पुते रास्ते-सा / यह साथ-साथ चलता था… Continue reading हमारे पास एक दिन जब / संजय कुमार सिंह