तुम यहीं तो हो / संगीता मनराल

शाम के धुंधलके में ओस की कुछ बूदें पत्तों पर मोती-सी चहककर कह रही हैं तुम यहीं तो हो यहीं कहीं शायद मेरे आसपास नहीं शायद मेरे करीब ओह, नहीं सिर्फ यादों में दूर कहीं किसी कोने में छुपे जुगनू से जल बुझ, जल बुझ भटका देते हो मेरे ख्यालों को और भवरें-सा मन जा… Continue reading तुम यहीं तो हो / संगीता मनराल

सपने / संगीता मनराल

जिन चीटियों को पैरों तले दबा दिया था मैंने कभी अनजाने में वो अक्सर मुझे मेरे सपनों मे आकर काटतीं हैं उनके डंक पूरे शरीर मे सुई से चुभकर सुबह तक देह के हर हिस्से को सूजन मे तबदील कर देते हैं ऐसा अक्सर होने लगा है आजकल पता नहीं क्यों….?