औरतें-2 / संध्या नवोदिता

औरतों ने अपने तन का सारा नमक और रक्त इकट्ठा किया अपनी आँखों में और हर दुख को दिया उसमें हिस्सा हज़ारों सालों में बनाया एक मृत सागर आँसुओं ने कतरा-कतरा जुड़कर कुछ नहीं डूबा जिसमें औरत के सपनों और उम्मीदों के सिवाय

औरतें-1 / संध्या नवोदिता

कहाँ हैं औरतें ? ज़िन्दगी को रेशा-रेशा उधेड़ती वक़्त की चमकीली सलाइयों में अपने ख़्वाबों के फंदे डालती घायल उँगलियों को तेज़ी से चला रही हैं औरतें एक रात में समूचा युग पार करतीं हाँफती हैं वे लाल तारे से लेती हैं थोड़ी-सी ऊर्जा फिर एक युग की यात्रा के लिए तैयार हो रही हैं… Continue reading औरतें-1 / संध्या नवोदिता