किसी नदी की तरह…. / सजीव सारथी

सदियों से बह रहा हूँ, किसी नदी की तरह…… जिन्दगी – मिली है कभी किसी घाट पर, तो किसी किनारे कभी रुका हूँ पल दो पल, जिस्म बन कर आकाश में उडा हूँ कभी, तो कभी जमीं पर ओंधे मुँह पडे देखता हूँ – अपनी रूह को. कभी किसी बूढ़े पेड की शाखों से लिपटा… Continue reading किसी नदी की तरह…. / सजीव सारथी

सूरज / सजीव सारथी

जब छोटा था, तो देखता था, उस सूखे हुए, बिन पत्तों के पेड़ की शाखों से, सूरज… एक लाल बॉल सा नज़र आता था, आज बरसों बाद, ख़ुद को पाता हूँ, हाथ में लाल गेंद लिए बैठा – एक बड़ी चट्टान के सहारे, चट्टान मेरी तरह खामोश है, और मैं जड़, उसकी तरह, आज भी… Continue reading सूरज / सजीव सारथी