आदमी का नशा / सईददुद्दीन

दो शराबी दरख़्त अपना बड़ा सर हिला हिला कर झूम रहे हैं सूरज के जाम से आज उन्होंने कुछ ज़्यादा ही चढ़ा ली है अब वो अपनी शाख़ों में बैठे परिंदों की चहकार से ज़्यादा सड़क पर चलते ट्रैफिक के शोर को इंहिमाक से सुन रहे हैं दोनों शराब दरख़्त जड़ों समेत सड़क पर आ… Continue reading आदमी का नशा / सईददुद्दीन

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अलग अलग इकाइयां / सईददुद्दीन

सुब्ह से मैं उस घड़ी की टिक टिक सुन रहा हूँ जो दीवार से अचानक ग़ाएब हो गई है लेकिन हर घंटे के इख़्तिताम पर अलार्म देने लगती है और फिर टिक टिक टिक कभी कभी से टिक टिक मुझे अपने सीने में सुनाई देती है कभी कलाई की नब्ज़ में फिर तो जिस चीज़… Continue reading अलग अलग इकाइयां / सईददुद्दीन

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