गत माह, दो बड़े घाव धरती पर हुए, हमने देखा नक्षत्र खचित आकाश से दो बड़े नक्षत्र झरे!! रस के, रंग के– दो बड़े बूंद ढुलक-ढुलक गए। कानन कुंतला पृथ्वी के दो पुष्प गंधराज सूख गए!! (हमारे चिर नवीन कवि, हमारे नवीन विश्वकवि दोनों एक ही रोग से एक ही माह में- गए आश्चर्य?) तुमने… Continue reading गत मास का साहित्य!! / फणीश्वर नाथ ‘रेणु’
Category: Phanishwar Nath ‘Renu’
अपने ज़िले की मिट्टी से / फणीश्वर नाथ ‘रेणु’
कि अब तू हो गई मिट्टी सरहदी इसी से हर सुबह कुछ पूछता हूँ तुम्हारे पेड़ से, पत्तों से दरिया औ’ दयारों से सुबह की ऊंघती-सी, मदभरी ठंडी हवा से कि बोलो! रात तो गुज़री ख़ुशी से? कि बोलो! डर नहीं तो है किसी का? तुम्हारी सर्द आहों पर सशंकित सदा एकांत में मैं सूंघता… Continue reading अपने ज़िले की मिट्टी से / फणीश्वर नाथ ‘रेणु’