नदी की धार चट्टानों पे जब आकर झरी होगी ! तभी से आदमी ने बाँध की साज़िश रची होगी !! तुझे देवी बनाया और पत्थर कर दिया तुझको ! तरेगी भी अहिल्या तो चरण रज़ राम की होगी !! मरुस्थल में तुम्हारा हाल तो उस बूँद जैसा है ! जिसे गुल पी गए होंगे जो… Continue reading नदी की धार चट्टानों पे, जब आकर झरी होगी / ललित मोहन त्रिवेदी
Category: Lalit Mohan Trivedi
आईना भी मुझे बरगलाता रहा / ललित मोहन त्रिवेदी
ग़ज़ल आईना भी मुझे , बरगलाता रहा ! दाहिने को वो बाँया दिखाता रहा !! दुश्मनी की अदा देखिये तो सही ! करके एहसान, हरदम जताता रहा !! तार खींचा औ ‘ फिर छोड़कर,चल दिया ! मैं बरस दर बरस झनझनाता रहा !! उसने कोई शिकायत कभी भी न की ! इस तरह से मुझे… Continue reading आईना भी मुझे बरगलाता रहा / ललित मोहन त्रिवेदी