अपने ही सजद का है शौक मेरे सर-ए-नियाज़ में काबा-ए-दिल है महव हूँ नमाज़ में पिंहाँ है गर ख़ाक डाल दीदा-ए-इम्तियाज़ में जाम ओ ख़म ओ सबू न देख मय-कदा-ए-मजाज़ में किस का फ़रोग-ए-अक्स है कौन महव-ए-नाज़ में कौंद पही हैं बिजलियाँ आईना-ए-मजाज़ में सुब्ह-ए-अज़ल है सुब्ह-ए-हुस्न शाम-ए-अबद है दाग़-ए-इश्क़ दिल है मक़ाम-ए-इर्तिबात सिलसिला-ए-दराज़ में… Continue reading अपने ही सजद का है शौक मेरे सर-ए-नियाज़ में / ‘जिगर’ बरेलवी
Category: Jigar Barelvi
आह हम हैं और शिकस्ता-पाइयाँ / ‘जिगर’ बरेलवी
आह हम हैं और शिकस्ता-पाइयाँ अब कहाँ वो बादिया-पैमाइयाँ जोश-ए-तूफाँ है न मौंजों का ख़रोश अब लिए है गोद में गहराइयाँ खेलते थे ज़िंदगी ओ मौत से वो शबाब और आह वो कजराइयाँ हम हैं सन्नाटा है और महवियतें रात है और रूह की गहराइयाँ