रवि रश्मि किरीट धरे द्युति कुन्तलों की नव नीर धरों पय लिए श्रुति भार हितैषी स्ववादित वीण का किन्नरों से भ्रमरों पय लिए उतरी पड़ती नभ से परी सी मानो स्वर्ण प्रभात परों पय लिए किरणों के करों सरों के जलजात उषा की हँसि अधरों पय लिए
Category: Jagdamba Prasad Mishra Hitaishi
उच्छवासों से / जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’
ऐ उर के जलते उच्छ्वासों जग को ज्वलदांगार बना दो, क्लान्त स्वरों को, शान्त स्वरों को, सबको हाहाकार बना दो, सप्तलोक क्या भुवन चतुर्दश को, फिरकी सा घूर्णित कर दो, गिरि सुमेर के मेरुदण्ड को, कुलिश करों से चूर्णित कर दो, शूर क्रूर इन दोनों ही को, रणशय्या पर शीघ्र सुला दो, इनकी माँ, बेटी,… Continue reading उच्छवासों से / जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’