खेल-सियासत / हृदयेश

यह कैसी शतरंज बिछी है, जिसपर खड़े पियादे-से हम खेल-खेल में पिट जाते हैं, कितने सीधे-सादे-से हम । बिना मोल मोहरे बनें हम खड़े हुए हैं यहाँ भीड़ में ऐसी क्या है मज़बूरी जो बँधे प्राण राजा-वजीर में फलक-विहीन किसी तुक्के-सा चलते हैं, जिस-तिस के हाथों राजा के हाथी-घोड़ों से कुछ थोड़े, कुछ ज़्यादे-से हम… Continue reading खेल-सियासत / हृदयेश

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मन बहुत है / हृदयेश

आज तपती रेत पर कुछ छंद लहरों के लिखें हम समय के अतिरेक को हम साथ ले अपने स्वरों में मन बहुत है ! कस रहे गुंजलक से ये सुबह के पल बहुत भारी अनय को देता समर्थन दिवस यह गेरुआधारी चिमनियों से निकल सोनल धूप उतरी प्यालियों में ज़िंदगी की खोज होने है लगी… Continue reading मन बहुत है / हृदयेश

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