मेरा उसका परिचय इतना / अंसार कम्बरी

मेरा उसका परिचय इतना वो नदिया है, मैं मरुथल हूँ। उसकी सीमा सागर तक है मेरा कोई छोर नहीं है। मेरी प्यास चुरा ले जाए ऐसा कोई चोर नहीं है। मेरा उसका इतना नाता वो ख़ुशबू है, मैं संदल हूँ। उस पर तैरें दीप शिखाएँ सूनी सूनी मेरी राहें। उसके तट पर भीड़ लगी है… Continue reading मेरा उसका परिचय इतना / अंसार कम्बरी

खुदा परस्त दुआ ढूंढ रहे हैं / अंसार कम्बरी

वो हैं के वफ़ाओं में खता ढूँढ रहे हैं, हम हैं के खताओं में वफ़ा ढूँढ रहे हैं। हम हैं खुदा परस्त दुआ ढूँढ रहे हैं, वो इश्क के बीमार दवा ढूँढ रहे हैं। तुमने बड़े ही प्यार से जो हमको दिया है, उस ज़हर में अमृत का मज़ा ढूँढ रहे हैं। माँ-बाप अगर हैं… Continue reading खुदा परस्त दुआ ढूंढ रहे हैं / अंसार कम्बरी

वो तपोवन हो के राजा का महल / अंसार कम्बरी

वो तपोवन हो के राजा का महल, प्यास की सीमा कोई होती नहीं, हो गये लाचार विश्वामित्र भी, मेनका मधुमास लेकर आ गयी। तृप्ति तो केवल क्षणिक आभास है, और फिर संत्रास ही संत्रास है, शब्द-बेधी बाण, दशरथ की व्यथा, कैकेयी के मोह का इतिहास है, इक ज़रा सी भूल यूँ शापित हुई, राम का… Continue reading वो तपोवन हो के राजा का महल / अंसार कम्बरी

कलजुगी दोहे / अंसार कम्बरी

केवल परनिंदा सुने, नहीं सुने गुणगान। दीवारों के पास हैं, जाने कैसे कान ।। सूफी संत चले गए, सब जंगल की ओर। मंदिर मस्जिद में मिले, रंग बिरंगे चोर ।। सफल वही है आजकल, वही हुआ सिरमौर। जिसकी कथनी और है, जिसकी करनी और।। हमको यह सुविधा मिली, पार उतरने हेतु। नदिया तो है आग… Continue reading कलजुगी दोहे / अंसार कम्बरी