अब बताओ जाएगी ज़िंदगी कहाँ यारो / हिमायत अली ‘शाएर’

अब बताओ जाएगी ज़िंदगी कहाँ यारो फिर हैं बर्क़ की नज़रें सूए आश्याँ यारो अबन कोई मंज़िल है और न रहगुज़र कोई जाने काफ़िला भटके अब कहाँ कहाँ यारो फूल हैं कि लाशें हैं बाग़ है कि म़कतल है शाख़ शाख़ होता है दार का गुमाँ यारो मौत से गुज़र कर ये कैसी ज़िंदगी पाई… Continue reading अब बताओ जाएगी ज़िंदगी कहाँ यारो / हिमायत अली ‘शाएर’

आँख़ की क़िस्मत है अब बहता समंदर देखना / हिमायत अली ‘शाएर’

आँख़ की क़िस्मत है अब बहता समंदर देखना और फ़िर इक डूबते सूरज का मंज़र देखना शाम हो जाए तो दिन का ग़म मनाने के लिए एक शोला सा मुनव्वर अपने अंदर देखना रौशनी में अपनी शख़्सियत पे जब भी सोचना अपने क़द को अपने साए से भी कम-तर देखना संग-ए-मंज़िल इस्तिआरा संग-ए-मरक़द का न… Continue reading आँख़ की क़िस्मत है अब बहता समंदर देखना / हिमायत अली ‘शाएर’