बेझिझक / हेमन्त प्रसाद दीक्षित

झिझके हुए शब्द का मुँह धुलवाया / ठीक से अरामकुर्सी पर बैठाया / ताज़गी बरक़रार रखने के लिए काफी पिलायी / और पूछा झिझक के बारे में। पता चला कि झिझकता रहा शम्बूक का वध करने में / मगर वर्ण-व्यवस्था का क्या होता / पुरोहित चढ़ाए बैठे थे त्योरियाँ / और उस निरपराध का सिर… Continue reading बेझिझक / हेमन्त प्रसाद दीक्षित

सड़क बुहारती हुई औरत / हेमन्त प्रसाद दीक्षित

सड़क बुहारती हुई औरत जानती है कहा-कहाँ हैं गड्ढे कहाँ-कहाँ पड़ा है कीचड़ कहाँ-कहाँ छितरे हैं सड़े पत्ते कहाँ-कहाँ बहाया गया है कुन्ती-पुत्र कहाँ-कहाँ है फिसलन कहाँ-कहाँ बिखरे हैं निरोध और कहाँ-कहाँ थूक गया है सनातन धर्म सड़क बुहारती हुई औरत कई हज़ार साल गन्दगी के ख़िलाफ़ / छेड़ती है आन्दोलन और सुस्ताने के लिए… Continue reading सड़क बुहारती हुई औरत / हेमन्त प्रसाद दीक्षित