मिट्टी की कविता / हेमन्त कुकरेती

मिट्टी को पानी ही पत्थर बनाता है पानी में भीगकर ही वह होता है कोमल सम्भव है आग के भीतर बूँद की उपस्थिति आकाश में पृथ्वी का जीवन तितलियाँ कितने युगों से रंगों की काँपती हुई चुप्पी को ढो रही हैं अपनी काया पर फूल किसके प्रेम की यातना में सुगलते हैं और जाने किसकी… Continue reading मिट्टी की कविता / हेमन्त कुकरेती

आँख / हेमन्त कुकरेती

देखने के लिए नज़र चाहिए ठीक हो दूर और पास की तो कहना ही क्या बाज़ार को दूर से देखने पर भी लगता है डर मेरा घर तो बाज़ार के इतने पास है कि उजड़ी हुई दुकान नज़र आता है ठेठ पड़ोस का घर हो जाता है सुदूर का गृह चीख़ता है कि उसकी कक्षा… Continue reading आँख / हेमन्त कुकरेती