ये मुमकिन है कि मिल जाएँ तेरी खोई चीज़ें / हस्तीमल ‘हस्ती’

ये मुमकिन है कि मिल जाएँ तेरी खोयी हुई चीज़ें क़रीने से सजा कर रख ज़रा बिखरी हुई चीज़ें कभी यूँ भी हुआ है हंसते-हंसते तोड़ दी हमने हमें मालूम नहीं था जुड़ती नहीं टूटी हुई चीज़ें ज़माने के लिए जो हैं बड़ी नायब और महंगी हमारे दिल से सब की सब हैं वो उतरी… Continue reading ये मुमकिन है कि मिल जाएँ तेरी खोई चीज़ें / हस्तीमल ‘हस्ती’

इस बार मिले हैं ग़म कुछ और तरह से भी / हस्तीमल ‘हस्ती’

इस बार मिले हैं ग़म, कुछ और तरह से भी आँखें है हमारी नम, कुछ और तरह से भी शोला भी नहीं उठता, काजल भी नहीं बनता जलता है किसी का ग़म, कुछ और तरह से भी हर शाख़ सुलगती है, हर फूल दहकता है गिरती है कभी शबनम, कुछ और तरह से भी मंज़िल… Continue reading इस बार मिले हैं ग़म कुछ और तरह से भी / हस्तीमल ‘हस्ती’