ख़ू[1] समझ में नहीं आती तेरे दीवानों की जिनको दामन की ख़बर है न गिरेबानों की आँख वाले तेरी सूरत पे मिटे जाते हैं शमअ़-महफ़िल की तरफ़ भीड़ है परवानों की राज़े-ग़म से हमें आगाह किया ख़ूब किया कुछ निहायत[2] ही नहीं आपके अहसानों की आशिक़ों ही का जिगर है कि हैं ख़ुरसंदे-ज़फ़ा[3] काफ़िरों की… Continue reading ख़ू समझ में नहीं आती तेरे दीवानों की / हसरत मोहानी
Category: Hasrat Mohani
वो जब ये कहते हैं तुझ से ख़ता ज़रूर हुई / हसरत मोहानी
वो जब ये कहते हैं तुझ से ख़ता ज़रूर हुई मैं बे-क़सूर भी कह दूँ कि हाँ ज़रूर हुई नज़र को ताबे-तमाशाए-हुस्ने यार[1] कहाँ ये इस ग़रीब को तम्बीहे-बेक़सूर[2] हुई तुफ़ैले-इश्क[3] है ‘हसरत’ ये सब मेरे नज़दीक तेरे कमाल की शोहरत जो दूर-दूर हुई शब्दार्थ: 1. प्रिय-दर्शन की शक्ति 2. बेक़सूर डाँट 3. प्रेम का… Continue reading वो जब ये कहते हैं तुझ से ख़ता ज़रूर हुई / हसरत मोहानी