रसूल हमजातोव / हरिराम मीणा

1. कविता आग है इस आग में अंगारों के ऊपर मशाल की लौ है लौ से बढ़कर उसकी रोशनी बाहरी अन्धकार को भगाने वाली भीतर की आग है कविता । 2. उकाब उड़ता हो कितने भी ऊँचे आकाश में आँखें उसकी देखती हैं भूख-प्यास बुझाने वाली धरती को कल्पना के खटोले में उड़ान भरती कविता… Continue reading रसूल हमजातोव / हरिराम मीणा