नाव बनाओ / हरिकृष्णदास गुप्त ‘हरि’

नाव बनाओ, नाव बनाओ, भैया मेरे जल्दी आओ। वह देखो पानी आया है, घिर-घिरकर बादल छाया है, सात समंदर भर लाया है, तुम रस का सागर भर लाओ। पानी सचमुच खूब पड़ेगा, लंबी-चौड़ी गली भरेगा, लाकर घर में नदी धरेगा, ऐसे में तुम भी लहरओ। ले आओ कागज़ चमकीला, लाल-हरा या नीला-पीला, रंग-बिरंगा खूब रंगीला,… Continue reading नाव बनाओ / हरिकृष्णदास गुप्त ‘हरि’

बुढ़िया गुड़िया / हरिकृष्णदास गुप्त ‘हरि’

गुड़िया मेरी-मेरी गुड़िया, गुड़िया है, बस बिल्कुल बुढ़िया! दाँत बत्तीसों उसके टूटे, बोले, थूक फुहारा छूटे। सिर है बस बालों का बंडल, यों समझो, सन का है जंगल। गुड़िया मेरी, मेरी गुड़िया! बुढ़िया है, बस बिल्कुल बुढ़िया! चुँधी-चुँधी आँखें है रखती, कुछ का कुछ उनसे है लखती। कानों से भी कम सुनती है, अटकल-पच्चू ही… Continue reading बुढ़िया गुड़िया / हरिकृष्णदास गुप्त ‘हरि’