दोहा / भाग 2 / हरिप्रसाद द्विवेदी

कूकरु उदरु खलाय कैं, घर घर चाँटत चून। रहो रहत सद खून सों, नित नाहर नाखून।।11।। पैरि पार असि धार कै, नाखि युद्ध नर मीर। भेदि भानु मण्डलहिं अब, चल्यौ कहाँ रणधीर।।12।। औसरू आवत प्रान पै, खेलि जाय गहि टेक। लाखनु बीच सराहियै, प्रकृति बीर सो एक।।13।। सीस हथेरी पर धरें, ठौकत भुज मजबूत। छिति… Continue reading दोहा / भाग 2 / हरिप्रसाद द्विवेदी

दोहा / भाग 1 / हरिप्रसाद द्विवेदी

जयति कंस-करि-केहरी, मधु-रिपु केशी-काल। कालिय-मद-मर्दन हरे, केशव कृष्ण कृपाल।।1।। आदि मध्य अबसान हूँ, जा में उदित उछाह। सुरस वीर इकरस सदा, सुभग सर्व रस-नाह।।2।। खल-खण्डन मण्डन-सुजन, सरल सुहृद स विवेक। गुण-गँभीर रण सूरमा, मिलतु लाख महँ एक।।3।। रण-थल मूर्च्छित स्वामि के, लीनें प्राण बचाय। गीधनु निज तनु-माँसु दै, धन्य संयमा राय।।4।। सुन्दर सत्य-सरोज सुचि, बिगस्यो… Continue reading दोहा / भाग 1 / हरिप्रसाद द्विवेदी