मंच पर रोशनी नेपथ्य में अंधेरा सारतत्त्व यही मेरा। दर्शकों की भीड़ में तालियों की गूँज में खोया है कहीं सपनों का सवेरा। प्रशंसक आए आयोजक आए व्यवस्थापक आए विदूषक आए सभायें हुईं प्रतिज्ञायें हुईं झगड़ा बस इतना क्या तेरा क्या मेरा। किरदार ऐसे बने मंच ऐसे सजे व्यभिचार हुए दुराचार हुए अत्याचार हुए बलात्कार… Continue reading नेपथ्य में अंधेरा / हरानन्द
Category: Hara Nand
वक़्त की नदी में / हरानन्द
वक़्त की नदी में जब सारे सपनों को बहा दिया तुम कहते हो मैंने यह क्या किया। बबूल के पलाश के जंगल से गुज़रे जब यात्रा का हर पड़ाव था रक्त से लथपथ पलाश के फूलों में मैंने लहू मिला दिया तुम कहते हो मैंने यह क्या किया उजाले भी तुम्हारे थे अंधेरे भी तुम्हारे… Continue reading वक़्त की नदी में / हरानन्द