हंस कहाँ मिलिहैं अब तो बर भक्ति के भाव वे पूरब वारे । तीरथ मे छहरात न शांति सदाँ घहरात हैँ लोभ नगारे । मँदिर के दृढ़ जाल तनाय तहाँ बहु ब्याध पुजारी निहारे । फाँसत कामिनी कंचन की चिरियाँ धरि मूरति के बर चारे ।
हंस कहाँ मिलिहैं अब तो बर भक्ति के भाव वे पूरब वारे । तीरथ मे छहरात न शांति सदाँ घहरात हैँ लोभ नगारे । मँदिर के दृढ़ जाल तनाय तहाँ बहु ब्याध पुजारी निहारे । फाँसत कामिनी कंचन की चिरियाँ धरि मूरति के बर चारे ।