कोंपले फिर फूट आईं शाख़ पर कहना उसे / फ़रहत शहज़ाद

कोंपलें फिर फूट आँई शाख पर कहना उसे वो न समझा है न समझेगा मगर कहना उसे वक़्त का तूफ़ान हर इक शय बहा के ले गया कितनी तनहा हो गयी है रहगुज़र कहना उसे जा रहा है छोड़ कर तनहा मुझे जिसके लिए चैन न दे पायेगा वो सीमज़र कहना उसे रिस रहा हो… Continue reading कोंपले फिर फूट आईं शाख़ पर कहना उसे / फ़रहत शहज़ाद

एक बस तू ही नहीं मुझ से ख़फ़ा हो बैठा / फ़रहत शहज़ाद

एक बस तू ही नहीं मुझसे ख़फ़ा हो बैठा मैं ने जो संग तराशा वो ख़ुदा हो बैठा उठ के मंज़िल ही अगर आये तो शायद कुछ हो शौक़-ए-मंज़िल में मेरा आबलापा हो बैठा मसलहत छीन गई क़ुव्वत-ए-गुफ़्तार मगर कुछ न कहना ही मेरा मेरी सदा हो बैठा शुक्रिया ए मेरे क़ातिल ए मसीहा मेरे… Continue reading एक बस तू ही नहीं मुझ से ख़फ़ा हो बैठा / फ़रहत शहज़ाद