जो कुछ भी है नज़र में सो वहम-ए-नुमूद है / फ़रहत कानपुरी

जो कुछ भी है नज़र में सो वहम-ए-नुमूद है आलम तमाम एक तिलिस्म-ए-वजूद है आराइश-ए-नुमूद से बज़्म-ए-जुमूद है मेरी जबीन-ए-शौक़ दलील-ए-सुजूद है हस्ती का राज़ क्या है ग़म-ए-हस्त-ओ-बूद है आलम तमाम दाम-ए-रूसूम-ओ-क़ुयूद है अक्स-ए-जमाल-ए-यार से वहम-ए-नुमूद है वर्ना वजूद-ए-ख़ल्क भी ख़ुद बे-वजूद है अब कुश्तगान-ए-शौक़ को कुछ भी न चाहिए फ़र्श-ए-ज़मीं है साया-ए-चर्ख़-ए-कबूद है हंगामा-ए-बहार… Continue reading जो कुछ भी है नज़र में सो वहम-ए-नुमूद है / फ़रहत कानपुरी

आँखों में बसे हो तुम आँखों में अयाँ हो कर / फ़रहत कानपुरी

आँखों में बसे हो तुम आँखों में अयाँ हो कर दिल ही मे न रह जाओ आँखों से निहाँ हो कर हाँ लब पे भी आ जाओ अंदाज़-ए-बयाँ हो कर आँखों में भी आ जाओ अब दिल की ज़बाँ हो कर खुल जाओ कभी मुझे से मिल जाओ कभी मुझ को रहते हो मिरे दिल… Continue reading आँखों में बसे हो तुम आँखों में अयाँ हो कर / फ़रहत कानपुरी