बर्क़ को जितनी शोहरत मिली / ‘फना’ निज़ामी कानपुरी

बर्क़ को जितनी शोहरत मिली आशियाँ की ब-दौलत मिली ज़ब्त-ए-ग़म की ये क़ीमत मिली बे-वफ़ाई की तोहमत मिली उन को गुल का मुकद्दर मिला मुझ को शबनम की क़िस्मत मिली क़ल्ब-ए-मै-ख्वार को छोड़ कर मुझ को हर दिल में नफ़रत मिली उम्र तो कम मिली शम्मा को ज़िंदगी खूब-सूरत मिली मौत लाई नई ज़िंदगी मैं… Continue reading बर्क़ को जितनी शोहरत मिली / ‘फना’ निज़ामी कानपुरी

ऐ हुस्न ज़माने के तेवर भी तो समझा कर / ‘फना’ निज़ामी कानपुरी

ऐ हुस्न ज़माने के तेवर भी तो समझा कर अब ज़ुल्म से बाज़ आ जा अब जौर से तौबा कर टूटे हुए पैमाने बेकार सही लेकिन मै-ख़ाने से ऐ साक़ी बाहर तो न फेंका कर जलवा हो तो जलवा हो पर्दा हो तो पर्दा हो तौहीन-ए-तज़ल्ली है चिलमन से न झाँका कर अरबाब-ए-जुनूँ में हैं… Continue reading ऐ हुस्न ज़माने के तेवर भी तो समझा कर / ‘फना’ निज़ामी कानपुरी