वह समझ नहीं पाती कि वह क्या चाहती है क्योंकि सुबह दूसरों के चाहने से शुरू होती एक काम के लिए कहीं पहुँचती पा जाती है कुछ और उससे भी ज़्यादा ज़रूरी एक हाँक का उत्तर देते दूसरी को सुनती बौखलाई-सी रुक जाती हाँफती हुई बीच मँझधार साँस लेने को और रात होने की हड़बड़ाहट… Continue reading अपने होने से / चंद्र रेखा ढडवाल
Category: Chandra Rekha Ddwal
कहो इस तरह / चंद्र रेखा ढडवाल
तुम कहो पर इस तरह कि कहा हुआ तुम्हारा उसे कटघरे में खड़ा करे इस तरह नहीं कि उघड़े हुए तुम्हारे अंग-प्रत्यंग वह परोस ले एक बार फिर अपने लिए