रहे शारदा शीश पर, दे मुझको वरदान। गीत, गजल, दोहे लिखूँ, मधुर सुनाऊँ गान। हंस सवारी हाथ में, वीणा की झंकार, वर दे माँ मैं कर सकूँ, गीतों का शृंगार। माँ शब्दों में तुम रहो, मेरी इतनी चाह, पल-पल दिखलाती रहो, मुझे सृजन की राह। माँ तेरी हो साधना, इस जीवन का मोल, तू मुझको… Continue reading दोहे / बनज कुमार ‘बनज’