हर रविश ख़ाक उड़ाती है सबा मेरे बाद / फ़कीर मोहम्मद ‘गोया’

हर रविश ख़ाक उड़ाती है सबा मेरे बाद
हो गई और ही गुलशन की हवा मेरे बाद

क़त्ल से अपने बहुत ख़ुश हूँ वले ये ग़म है
दस्त-ए-क़ातिल को बहुत रंज हुआ मेरे बाद

मुझ सा बद-नाम कोई इश्‍क़ में पैदा न हुआ
हाँ मगर कै़स का कुछ नाम हुआ मेरे बाद

वो जो बर्गश्‍तगी-ए-बख़्त थी हरगिज़ न गई
ख़ाक-ए-मरक़द से मेरे चाक बना मेरे बाद

वलवला जोश-ए-जुनूँ का था मुझी तक ‘गोया’
नज़र आया न कोई आबला-पा मेरे बाद

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