सुब्ह का अफ़साना कहकर शाम से
खेलता हूं गर्दिशे-आय्याम[1]से
उनकी याद उनकी तमन्ना, उनका ग़म
कट रही है ज़िन्दगी आराम से
इश्क़ में आएंगी वो भी साअ़तें[2]
काम निकलेगा दिले-नाकाम से
लाख मैं दीवाना-ओ-रूसवा सही
फिर भी इक निस्बत[3] है तेरे नाम से
सुबहे-गुलशन[4] देखिये क्या गुल खिलाए[5]
कुछ हवा बदली हुई है शाम से
हाय मेरा मातमे-तश्नालबी[6]
शीशा[7] मिलकर रो रहा है जाम से
हर नफ़स[8] महसूस होता है ‘शकील’
आ रहे हैं नामा-ओ-पैग़ाम[9] से
शब्दार्थ-
1. कालचक्र
2. क्षण
3. संबंध
4. उपवन की सुबह
5. फूल खिलाए
6. पिपासा का शोक
7. बोतल
8. श्वास
9. पत्र और संदेश