मुनगे का पेड़ / त्रिजुगी कौशिक

घर की बाड़ी में
मुनगे क एक पेड़ है
वह गाहे-बगाहे की साग
प्रसूता के लिए तो पकवान है
मकान बनाने के लिए उसे काटना था
पर किसी की हिम्मत नहीं
उसमें बसी हैं
माँ की स्मृतियाँ
जैसे नीम्बू के पेड़ में दीदी की
पिताजी की– तालाब में लगाए
बड़ में
नतमस्तक हो जाता है हर कोई
उसी तरह
नीम्बू मुनगे का यह पेड़ है
पहले हम खेतों को
पेड़ों की वज़ह से पहचानते थे
हमारा बचपन गुज़रता था
आम, इमली, अमरूद, जाम के पेड़ों में
अब जिस तरह कट रहे हैं पेड़
स्मृतियाँ कट रही हैं
बदलता जा रहा है गाँव
भूलता जा रहा है गाँव ।

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