पैराडाइज़ लॉस्ट-1 / स‍ंजीव सूरी

पैराडाइज़ लास्ट (एक)

जबसे सर्रियलिस्ट कशमकश चली है उसके अन्दर
जब से उसके अन्दर मची उथल-पुथल में
रैडिकलिज़्म का समावेश हुआ है
एडम को लगने लगा है कि ईव
जो एक जिरहबख़तर थी
उसके न्युराटिक अस्तित्व के लिए
किसी दूसरे नक्षत्र पर रह गई है

जबसे उसकी छाती में क़ैद आवाज़ों की दोस्ती
उसकी आत्मा में उगे बीहड़ जंगल -सी हो गई है
तभी से उसने शुरू कर दी है पालनी
बड़ी संजीदगी से
अपनी तथाकथित क्लासिकल अहमन्न्यताएँ

गाँव के पोखर किनारे
पीपनियाँ बजाता हुआ एडम
आकाश को निहारता
अंतर्गुंफित आवेग में सोचता है
क्या यूँ ही बना रहेगा
ज़मीन और सितारों का फ़ासला
क्या फटे आकाश से यूँ ही बहती रहेगी
रक्त की धार
क्या यूँ ही गिद्ध तैरते रहेंगे हवा में
अपने डैनों में क़त्ल हुई रोशनी के टुकड़ों को जकड़े

सावधान!
एडम एक चरित्र नहीं
एक सघन आब्जेक्टिव विचार हो गया है
और इस विचार का मन-मस्तिष्क में आना
परमात्मा के वफ़ादार फ़रिश्तों से
बर्छियों की भाषा में बात करने के समान है.

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