धूप के साथ गया साथ निभाने वाला / वज़ीर आग़ा

धूप के साथ गया, साथ निभाने वाला अब कहाँ आएगा वो, लौट के आने वाला रेत पर छोड़ गया, नक़्श हज़ारों अपने किसी पागल की तरह, नक़्श मिटाने वाला सब्ज़[1] शाखें कभी, ऐसे तो नहीं चीखतीं हैं कौन आया है, परिंदों को डराने वाला आरिज़-ए-शाम[2] की सुर्ख़ी ने, किया फ़ाश उसे पर्दा-ए-अब्र[3] में था, आग… Continue reading धूप के साथ गया साथ निभाने वाला / वज़ीर आग़ा

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सितम हवा का अगर तेरे तन को रास नहीं / वज़ीर आग़ा

सितम हवा का अगर तेरे तन को रास नहीं कहाँ से लाऊँ वो झोंका जो मेरे पास नहीं पिघल चुका हूँ तमाज़त[1] में आफ़ताब की मैं मेरा वजूद भी अब मेरे आस-पास नहीं मेरे नसीब में कब थी बरहनगी[2] अपनी मिली वो मुझ को तमन्ना की बे-लिबास नहीं किधर से उतरे कहाँ आ के तुझसे… Continue reading सितम हवा का अगर तेरे तन को रास नहीं / वज़ीर आग़ा

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