आह-ए-शब-ए-नाला-ए-सहर ले कर / ‘वहशत’ रज़ा अली कलकत्वी

आह-ए-शब-ए-नाला-ए-सहर ले कर निकले हम तोश-ए-सफर ले कर शुग़्ल है नाला कुछ मुराद नहीं क्या करूँ ऐ फ़लक असर ले कर तेरी महफ़िल का यार क्या कहना हम भी निकले हैं चश्म-ए-तर ले कर आप मैं ने दिया दिल उस बुत को झुक गई शाख़ ख़ुद समर ले कर था क़फ़स का ख़याल दामन-गीर उड़… Continue reading आह-ए-शब-ए-नाला-ए-सहर ले कर / ‘वहशत’ रज़ा अली कलकत्वी

आँख में जलवा तिरा दिल में तिरी याद रहे / ‘वहशत’ रज़ा अली कलकत्वी

आँख में जलवा तिरा दिल में तिरी याद रहे ये मयस्सर हो तो फिर क्यूँ कोई ना-शाद रहे इस ज़माने में ख़ामोशी से निकलता नहीं काम नाला पुर-शोर हो और ज़ोरों पे फ़रियाद रहे दर्द का कुछ तो हो एहसास दिल-ए-इंसान में सख़्त ना-शाद है दाइम जो यहाँ शाद रहे ऐ तिरे दाम-ए-मोहब्बत के दिल… Continue reading आँख में जलवा तिरा दिल में तिरी याद रहे / ‘वहशत’ रज़ा अली कलकत्वी