आह-ए-शब-ए-नाला-ए-सहर ले कर / ‘वहशत’ रज़ा अली कलकत्वी
आह-ए-शब-ए-नाला-ए-सहर ले कर निकले हम तोश-ए-सफर ले कर शुग़्ल है नाला कुछ मुराद नहीं क्या करूँ ऐ फ़लक असर ले कर तेरी महफ़िल का यार क्या कहना हम भी निकले हैं चश्म-ए-तर ले कर आप मैं ने दिया दिल उस …