फिर वही किस्सा / वत्सला पाण्डे

वही किस्सा फिर सुनाने लगे तुम जिसकी आवाज़ से भागती रही हमेशा जिसे भूल जाना चाहती रही मैं सदा किस्सा जो हो नहीं सकता कभी पूरा जाग गई इच्छा तब क्या करूंगी मैं मत जगाओ इतना कि तरसती ही रहूं नींद के लिए सदा सुनाना ही है तब सुनाओ वही किस्सा कि उनींदी रहूं सदा

आज तक / वत्सला पाण्डे

एक दिन तुम्हें कह बैठी सूरज जल रही मैं आज तक बर्फीले लोग सीली धरती रह गए तुम्हारे साथ उन अंधेरों को भी ले गया होगा तुम्हारा ही साया पर झुलसते गए मन के कोने इन्हीं को अपना कहती रही आज तक कब तक जलती रहूं तुम्हारी आग में होने लगी हूं बर्फ क्या जानने… Continue reading आज तक / वत्सला पाण्डे