Tulsidas Archive
गरजहिं गज घंटा धुनि घोरा। रथ रव बाजि हिंस चहु ओरा॥ निदरि घनहि घुर्म्मरहिं निसाना। निज पराइ कछु सुनिअ न काना॥१॥ महा भीर भूपति के द्वारें। रज होइ जाइ पषान पबारें॥ चढ़ी अटारिन्ह देखहिं नारीं। लिँएँ आरती मंगल थारी॥ २॥ …
चौ०-भूप सहस दस एकहि बारा। लगे उठावन टरइ न टारा॥ डगइ न संभु सरासन कैसें। कामी बचन सती मनु जैसें॥१॥ सब नृप भए जोगु उपहासी। जैसें बिनु बिराग संन्यासी॥ कीरति बिजय बीरता भारी। चले चाप कर बरबस हारी॥२॥ श्रीहत भए …
चौ०-एक बार जननीं अन्हवाए। करि सिंगार पलनाँ पौढ़ाए ॥ निज कुल इष्टदेव भगवाना। पूजा हेतु कीन्ह अस्नाना॥१॥ करि पूजा नैबेद्य चढ़ावा। आपु गई जहँ पाक बनावा॥ बहुरि मातु तहवाँ चलि आई। भोजन करत देख सुत जाई॥२॥ गै जननी सिसु पहिं …
चौ०-सुनु मृदु गूढ़ रुचिर बर रचना। कृपासिंधु बोले मृदु बचना॥ जो कछु रुचि तुम्हरे मन माहीं। मैं सो दीन्ह सब संसय नाहीं॥१॥ मातु बिबेक अलौकिक तोरें। कबहुँ न मिटिहि अनुग्रह मोरें ॥ बंदि चरन मनु कहेउ बहोरी। अवर एक बिनती …
चौ०-जसि बिबाह कै बिधि श्रुति गाई। महामुनिन्ह सो सब करवाई॥ गहि गिरीस कुस कन्या पानी। भवहि समरपीं जानि भवानी॥१॥ पानिग्रहन जब कीन्ह महेसा। हियँ हरषे तब सकल सुरेसा॥ बेद मंत्र मुनिबर उच्चरहीं। जय जय जय संकर सुर करहीं॥२॥ बाजहिं बाजन …
चौ०-बिष्नु जो सुर हित नरतनु धारी। सोउ सर्बग्य जथा त्रिपुरारी॥ खोजइ सो कि अग्य इव नारी। ग्यानधाम श्रीपति असुरारी॥१॥ संभुगिरा पुनि मृषा न होई। सिव सर्बग्य जान सबु कोई॥ अस संसय मन भयउ अपारा। होई न हृदयँ प्रबोध प्रचारा॥२॥ जद्यपि …
श्रीगणेशायनमः श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्रीरामचरितमानस प्रथम सोपान बालकाण्ड श्लोक वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि। मङ्गलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥१॥ भवानीशङ्करौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ। याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाःस्वान्तःस्थमीश्वरम्॥२॥ वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शङ्कररूपिणम्। यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते॥३॥ सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ। वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ॥४॥ उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं …