पल्लव (कविता) / सुमित्रानंदन पंत

अरे! ये पल्लव-बाल! सजा सुमनों के सौरभ-हार गूँथते वे उपहार; अभी तो हैं ये नवल-प्रवाल, नहीं छूटो तरु-डाल; विश्व पर विस्मित-चितवन डाल, हिलाते अधर-प्रवाल! दिवस का इनमें रजत-प्रसार उषा का स्वर्ण-सुहाग; निशा का तुहिन-अश्रु-श्रृंगार, साँझ का निःस्वन-राग; नवोढ़ा की लज्जा सुकुमार, तरुणतम-सुन्दरता की आग! कल्पना के ये विह्वल-बाल, आँख के अश्रु, हृदय के हास; वेदना… Continue reading पल्लव (कविता) / सुमित्रानंदन पंत

नक्षत्र / सुमित्रानंदन पंत

[अपनी कॉटेज के प्रति] मेरे निकुंज, नक्षत्र वास! इस छाया मर्मर के वन में तू स्वप्न नीड़ सा निर्जन में है बना प्राण पिक का विलास! लहरी पर दीपित ग्रह समान इस भू उभार पर भासमान, तू बना मूक चेतनावान पा मेरे सुख दुख, भाव’च्छ्वास! आती जग की छवि स्वर्ण प्रात, स्वप्नों की नभ सी… Continue reading नक्षत्र / सुमित्रानंदन पंत

जीवन-यान / सुमित्रानंदन पंत

अहे विश्व! ऐ विश्व-व्यथित-मन! किधर बह रहा है यह जीवन? यह लघु-पोत, पात, तृण, रज-कण, अस्थिर-भीरु-वितान, किधर?–किस ओर?–अछोर,–अजान, डोलता है यह दुर्बल-यान? मूक-बुद्बुदों-से लहरों में मेरे व्याकुल-गान फूट पड़ते निःश्वास-समान, किसे है हा! पर उनका ध्यान! कहाँ दुरे हो मेरे ध्रुव! हे पथ-दर्शक! द्युतिमान! दृगों से बरसा यह अपिधान देव! कब दोगे दर्शन-दान? रचनाकाल: अगस्त… Continue reading जीवन-यान / सुमित्रानंदन पंत

परिवर्तन / सुमित्रानंदन पंत

(१) अहे निष्ठुर परिवर्तन! तुम्हारा ही तांडव नर्तन विश्व का करुण विवर्तन! तुम्हारा ही नयनोन्मीलन, निखिल उत्थान, पतन! अहे वासुकि सहस्र फन! लक्ष्य अलक्षित चरण तुम्हारे चिन्ह निरंतर छोड़ रहे हैं जग के विक्षत वक्षस्थल पर ! शत-शत फेनोच्छ्वासित,स्फीत फुतकार भयंकर घुमा रहे हैं घनाकार जगती का अंबर ! मृत्यु तुम्हारा गरल दंत, कंचुक कल्पान्तर… Continue reading परिवर्तन / सुमित्रानंदन पंत

मौन-निमन्त्रण / सुमित्रानंदन पंत

स्तब्ध ज्योत्सना में जब संसार चकित रहता शिशु सा नादान , विश्व के पलकों पर सुकुमार विचरते हैं जब स्वप्न अजान, न जाने नक्षत्रों से कौन निमंत्रण देता मुझको मौन ! सघन मेघों का भीमाकाश गरजता है जब तमसाकार, दीर्घ भरता समीर निःश्वास, प्रखर झरती जब पावस-धार ; न जाने ,तपक तड़ित में कौन मुझे… Continue reading मौन-निमन्त्रण / सुमित्रानंदन पंत

झर पड़ता जीवन डाली से / सुमित्रानंदन पंत

झर पड़ता जीवन-डाली से मैं पतझड़ का-सा जीर्ण-पात!– केवल, केवल जग-कानन में लाने फिर से मधु का प्रभात! मधु का प्रभात!–लद लद जातीं वैभव से जग की डाल-डाल, कलि-कलि किसलय में जल उठती सुन्दरता की स्वर्णीय-ज्वाल! नव मधु-प्रभात!–गूँजते मधुर उर-उर में नव आशाभिलास, सुख-सौरभ, जीवन-कलरव से भर जाता सूना महाकाश! आः मधु-प्रभात!–जग के तम में… Continue reading झर पड़ता जीवन डाली से / सुमित्रानंदन पंत

याचना / सुमित्रानंदन पंत

बना मधुर मेरा जीवन! नव नव सुमनों से चुन चुन कर धूलि, सुरभि, मधुरस, हिम-कण, मेरे उर की मृदु-कलिका में भरदे, करदे विकसित मन। बना मधुर मेरा भाषण! बंशी-से ही कर दे मेरे सरल प्राण औ’ सरस वचन, जैसा जैसा मुझको छेड़ें बोलूँ अधिक मधुर, मोहन; जो अकर्ण-अहि को भी सहसा करदे मन्त्र-मुग्ध, नत-फन, रोम… Continue reading याचना / सुमित्रानंदन पंत

वसन्त-श्री / सुमित्रानंदन पंत

उस फैली हरियाली में, कौन अकेली खेल रही मा! वह अपनी वय-बाली में? सजा हृदय की थाली में– क्रीड़ा, कौतूहल, कोमलता, मोद, मधुरिमा, हास, विलास, लीला, विस्मय, अस्फुटता, भय, स्नेह, पुलक, सुख, सरल-हुलास! ऊषा की मृदु-लाली में– किसका पूजन करती पल पल बाल-चपलता से अपनी? मृदु-कोमलता से वह अपनी, सहज-सरलता से अपनी? मधुऋतु की तरु-डाली… Continue reading वसन्त-श्री / सुमित्रानंदन पंत

विनय / सुमित्रानंदन पंत

मा! मेरे जीवन की हार तेरा मंजुल हृदय-हार हो, अश्रु-कणों का यह उपहार; मेरे सफल-श्रमों का सार तेरे मस्तक का हो उज्जवल श्रम-जलमय मुक्तालंकार। मेरे भूरि-दुखों का भार तेरी उर-इच्छा का फल हो, तेरी आशा का शृंगार; मेरे रति, कृति, व्रत, आचार मा! तेरी निर्भयता हों नित तेरे पूजन के उपचार– यही विनय है बारम्बार।… Continue reading विनय / सुमित्रानंदन पंत

मोह / सुमित्रानंदन पंत

छोड़ द्रुमों की मृदु-छाया, तोड़ प्रकृति से भी माया, बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन? भूल अभी से इस जग को! तज कर तरल-तरंगों को, इन्द्र-धनुष के रंगों को, तेरे भ्रू-भंगों से कैसे बिंधवा दूँ निज मृग-सा मन? भूल अभी से इस जग को! कोयल का वह कोमल-बोल, मधुकर की वीणा अनमोल, कह,… Continue reading मोह / सुमित्रानंदन पंत