फूले आसपास कास विमल अकास भयो, रही ना निसानी कँ महि में गरद की। गुंजत कमल दल ऊपर मधुप मैन, छाप सी दिखाई आनि विरह फरद की॥ ‘श्रीपति’ रसिक लाल आली बनमाली बिन, कछू न उपाय मेरे दिल के दरद की। हरद समान तन जरद भयो है अब, गरद करत मोहि चाँदनी सरद की॥
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जल भरे झूमैं मानौं भूमैं परसत आप / श्रीपति
जल भरे झूमैं मानौं भूमैं परसत आप, दसँ दिसान घूमैं दामिनी लये लये। धूर धार धूसरित धूम से धुँधारे कारे, घोर धुरवान धाकैं छवि सों छये छये॥ ‘श्रीपति सुकवि कहैं घरी घरी घहरात, तावत अतन तन ताप सों तये तये। लाल बिन कैसे लाज चादर रहैगी आज, कादर रजत मोहिं बादर नए-नए॥
बैठी अटा पर, औध बिसूरत / श्रीपति
बैठी अटा पर, औध बिसूरत पाये सँदेस न ‘श्रीपति पी के। देखत छाती फटै निपटै, उछटै जब बिज्जु छटा छबि नीके॥ कोकिल कूकैं, लगै मन लूकैं, उठैं हिय कैं, बियोगिनि ती के। बारि के बाहक, देह के दाहक, आये बलाहक गाहक जी के॥